Sunday, November 22, 2015

ज्याची त्याची शैली / श्रीधर तिळवे -नाईक 



अलीकडे काही लोक कवितेला गेयता /वृत्तछंदता/ लय /निदानपक्षी प्रतिमा हवी असे आडून आडून फारच सुचवायला लागलेत त्यात आमचे मित्रही आहेत तार्किक पातळीवर हे पटायला लागते पण प्रत्यक्षात असे होत नाही मी मात्रा वृत्तापासून सुरवात केलेला कवी आहे पण माझा अनुभव असा कि प्रत्येक अनुभव वा कल्पनानुभव स्वतःची एक मागणी एक दाब घेवून येतो कधी प्रतीमांचीच आवश्यकता भासते तर कधी गद्यप्राय ओळींची ! कथाकाव्य असेल तर गद्य ओळी येणे अटळ असते (फेसबुकवर मी लव शहर और टेरर हे महाकथाकाव्य टाकलंय त्यात अश्या ओळी आहेत कारण दहशतवादाचा डिसकोर्स आणि  मी माझ्या प्रेयसी बरोबर ह्या बॉम्बस्फोटाच्या रात्री  अडकल्याचा रोमांटिक भयग्रस्त अनुभव  हे त्या रात्री माझ्या डोक्यात एकत्रच चाल्ल होत आता त्यातला डिसकोर्स  वगळून शुद्ध कविता लिहणे शक्य होते पण ते त्या अनुभवाशी अप्रामाणिक झाले असते )छोट्या  लयबद्ध ओळीतून विलास सारंग , मन्या  ओक , मन्या जोशी  , निवी कुलकर्णी ,ओंकार कुलकर्णी सारखे कवी पटकन स्पर्श करतात आणि एक सूक्ष्मता नोंदवतात आणि संगीतासारखे रेंगाळत राहतात काही छोट्या आणि दीर्घ ओळ्यांच्या दरम्यान लयबद्ध प्रतीमाशील ताना घेत दिलीप चित्रे नामदेव ढसाळ  , विवेक मोहन राजापुरे , अरुण काळे , दिलीप धोंडो कुलकर्णी , सत्यपालसिंग राजपूत सारखे आतषबाजी करत अनुभवाचा गुलमोहर फुलवतात तर इंदिरा संत , मर्ढेकर , ग्रेस , मल्लिका ,  ज्ञानदा , चैताली , सौमित्र सारखे भावनांना प्रतिमा आणि लय ह्यांच्यात वागवत मेंदू ओला करून सोडतात . काही   चंद्रकांत पाटील , सतीश काळसेकर , तुळशी परब , यशवंत मनोहर , भुजंग मेश्राम  , महेंद्र भवरे , दासू वैद्य , वर्जेश सोलंकी , हेमंत दिवटे , संजीव खांडेकर , प्रणव सुखदेव , प्रवीण बांदेकर , वीरधवल परब ,दिनकर मनवर ,  नितीन वाघ , संदीप देशपांडे , मंगेश बनसोड , आल्हाद भावसार , लोकनाथ यशवंत , वैभव छायासारखे गद्यप्राय ओळीत कल्पनाविलास पेरत प्रतिमांना आणि प्रतीकांना सखोल न्हेत मनाचा वा समाजाचा आत जावून उत्खननप्रवण धांडोळा घेतात तर ना घ  देशपांडे , बहिणाभाई चौधरी , भालचंद्र नेमाडे , संतोष पवार , प्रकाश होळकर , ना धो महानोरांसारखे लोकशैलीची कक्षा रुंदावत न्हेत मराठमोळी लयकारी अभिधा आणि व्यंजनात खेळवत वाचकाला जमिनीवर ठेवत अनुभव पतंगासारखा उडवत राहतात .  पु शि रेगे , अरुण कोल्हटकर , सलिल वाघ ,नितीन अरुण कुलकर्णी सारखे   मोजक्या शब्दांचे ढळढळीत शब्दशिल्प उभे करतात . चंद्रकांत खोत , अनिरुद्ध कुलकर्णी , निळकंठ महाजन , सचिन केतकर , मंगेश काळे  प्रतिमांचे  सररिअल फुलोरे  फुलवत आख्या  कवितेलाच प्रतिमांचे झाड करून टाकतात आणि मनमोहन , सदानंद रेगे , विंदा करंदीकर , श्रीधर तिळवे सारखे अनुभवानुसार कविता बदलत ठेवतात . प्रत्येकाची तऱ्हा आणि पिंड वेगळा . अनुभव घेण्याची तऱ्हा वेगळी आणि व्यक्त करण्याचीही !तेव्हा वृत्तछंद आणि लय ह्यांच्या आग्रहाला मर्यादा असलेली बरी आणि कविता गद्यप्रायतेलाही ओपन असलेली बरी !

श्रीधर तिळवे -नाईक

Tuesday, November 17, 2015

नकुलीश /श्रीधर तिळवे - नाईक 

तूच दिलेस अधिकृत  दर्शन 
त्यानेच सुरु झाले घर्षण 

पतंजलीला योगानुशासन 
लकुलीशाला पाशुपतदर्शन 

जरी पुढे झाले वैदिक 
जिथे बसायची तिथे बसली किक 

वैदिक ब्राह्मण हेलपाटले 
यज्ञ त्यागून पूजेस लागले 

फेकून दिले हवन होम 
तेही सुरवातीस म्हणतात ओम 

पूजा झाली प्रायमरी 
यज्ञ झाले सेकंडरी 

आणि आत्ता पुन्हा जागे 
खेचावयास शिवत्व मागे 

सुरु झाले ह्यांचे संघ 
प्राचीन डाव नवे रंग 

कट्टर मुस्लिम देतायत ओपनिंग 
मुस्लिमधार्जिणे देतायत रनिंग 

पुरोगामी बनतायत मूर्ख 
त्यागून डोक्यातला तर्क 

शैवांनी आता जावे कोठे 
फक्त फुगेच झालेले मोठे 

निर्वाण बघू कि बघू समाज 
माझ्याच लोकांनी आणली लाज 

तुझ्या दारात श्रीधर थांबला 
त्याच्या काळजाचा आंबा आम्बला 

श्रीधर तिळवे -नाईक

 (डेकॅथलॉन -अनकॅटेगरीकल /मंत्र विभाग ह्या काव्यफायलीतून )

Sunday, November 15, 2015

चॅनेल : टेररीज़म / श्रीधर तिळवे

लव, शहर  और टेरर : श्रीधर तिळवे - नाईक  


मैं वहाँ  रहता हूँ
जहाँ मौत
सबसे सस्ती कमोडिटी हैं
जिसे टेररिस्ट  आहिस्ता आहिस्ता
सेमिऑडिटी बना  रहे  हैं

डार्लिंग
ये सिर्फ दहशतवाद नही हैं
ये एक प्रोग्राम हैं
जो हमारे इजाजतके बगैर
हमे बतौर लाश शामिल कर रहा हैं

 ये हमारा शहर
ब्रेकिंग न्यूज़ का एक अड्डा बन चुंका हैं
बस
सिर्फ हमारा प्यार हैं
जो मीडियासे बचा हैँ
वर्ना प्यार और मार
दोनों एकही न्यूज़ क्लबके आयटम नंबर हैं

मैं यात्रा कर रहा हूँ

इस शहरकी ये खासियत हैं की
यहाँ  हर कोई फिक्रको धुएमे उड़ाकर चलता हैं

ये सचमे बेफिक्री हैं या
इस शहरका  दिलही  मरा हुआ हैं
मैं नही जानता

बस अचानक किसीका डिब्बा गिर गया हैं
और हर कोई डिब्बेमे
बॉम्बकी संभवना देख रहा हैं

ये संभवना दहशत की ताक़त का सबसे सामर्थ्यशाली मुलभुत कण हैं

मेरा पसीना डरके तेलमे तब्दील हो रहा हैं
और भय स्कीनको चिपकचिपकके रीमिक्स

एक ऑईल की बदबू फ़ैल रही हैं मेरे अंदर
और मैं अस्वस्थ को आश्वस्त करनेकी कोशिश करते हुए
तुम्हारी तरफ ले जानेवाली लोकल ढूँढ रहा हूँ


मैंने हमेशा क़यामतसे ज्यादा लोकल का इंतजार किया हैं

ये कौन लोग हैं जो हमें घर जाकर चैनसे  मरने नही देते ?

अल्टीमेट अल्टीमेटम के मेसेज देके
कौन हमारे मौतकी खिंचड़ी पका रहे हैं ?

खुद्खुशीको मेरी जेबमे डालकर
कहाँ जा रहे हैं सुसाइड बॉम्बर ?

जिस जेबमे पैसे नहीं उस जेबमे जिहाद ?

भाई ये कौनसा इंटरप्रिटेशन हैं
और इसे कौन पढ़वा रहा हैं ?

भाई
मुझे तो सिखाया गया हैं
भूखे पेट भजन न होई गोपाला

मुझे  दो वक्तकी रोटी कमाने तो दो यारो


मैं नही जानता
कौनसे सिस्टिम में कौन ऊँगली कर रहा हैं ?

बस जिहादके नामपे कुछ इनोसंट्स खर्च  हो रहे हैं
जो मुझे नामंजूर हैं


एक लुकिंग ग्लास हैं
उनके और हमारे दरम्याँ
जहाँसे हम एकदूसरेको देख सकते हैं
मगर बात नही कर सकते

बस जब काँच टूटती हैं
तो पॉँव घायल हो जाते हैं
और जो काँचके टुकड़े मिल जाते हैं
उनपे मेड इन अमेरिका भी लिखा होता हैं
और मेड बाय मुसलमान भी लिखा होता हैं ।


मैं नही हूँ कर्ण जिसके पास कवचकुंडल था
तुमभी नहीं हो कर्ण
वेभी नहीं हैं कर्ण
कोईभी नही हैं कर्ण

हमारा  बाप सूर्य नहीँ हैं
हम सब इस नाशवंत धरती के नाशवंत पुत्र पुत्रियाँ हैं

जो आमसे खाते हैं
जो आमसे हगते हैं
जो आमसे पादते हैं
और रोटी नही मिलती
तो रोटी के लिए मेहनत करते हैं

फिर हम लोगोंके बीच ये दुश्मनी क्यों हैं ?

१०
ये लोकल ट्रेन क्यों नही आ रही हैं ?

११

रोड बने
रोडके साथ साथ डिवाइडर बने

बॉटल बनी
साथ साथ अलग अलग कंपनिया  बनी

ट्रेन बनी
अलग अलग फ्लॅटफॉर्म बने

क्या अपनी अपनी जगहसे अपनी अपनी जगहपे
हम अलग अलग पहूँच नही सकते ?

तुम अलग ट्रेनसे रुईया पहुँचोगी
मैं अलग ट्रेनसे रुईया पहुँचूँगा
और फिरभी हम रुईयाही पहुंचेंगे

फिर ये एकही ट्रेनसे एकही जगहसे एकही जगहपे पहुँचनेका दुराग्रह क्यों ?

१२
तेरा एक प्रॉफ़ेट हैं
मेराभी एक प्रॉफ़ेट हैं
उनकाभी एक प्रॉफेट हैं
सबके पास अपना अपना प्रॉफ़ेट हैं
सच कहूँ तो हर कोई प्रॉफ़ेट हैं
फर्क सिर्फ इतना हैं कि
मोहम्मदने खुदाको अपने पास आने दिया
और हम खुदा को अपने दिलसे दूर रखकर
 नमाज़ पढ़ रहे हैं
ख़ुदा तो हर जगह बाँहें फैलाके खड़ा हैं
और हम हैं की
अपने अपने रस्तेपे
बैठ गये हैँ ।

१३
दहशतका भाषाशास्त्र
आरडीएक्सका वामाचार
पोलिसी खाजखुल्ली
चॅटींगबाज मोबाईल

और मीटर डाउन डाउन करनेवाली एक घुमक्कङ टैक्सी

तुम व्हर्जिन हो
ये सिटी व्हर्जिन हैं

कुछ रेप्स फील्डिंग लगा रहे हैं
मगर ये बात ना तुम जानती हों
ना मैं जानता हूँ
ना ये सिटी जानती हैं

जानते सिर्फ वे लोग हैं
जो रेप्स लगाकर चले जा रहे  हैं

१४
तुम कुछ बोल रही हो
मुझे समझमे नही आ रहा हैं

वे भी कुछ बोल रहे हैं
मुझे समझमे नहीं आ रहा हैं

क्या इस शहरकी भाषा जलनेवाली हैं
और सिर्फ भाषाशास्त्र बचनेवाला हैं ?

१५

मैं ऐसी जगह ढूँढ रहा हूँ
जहाँ मुझे प्रॉपर सिग्नल भी मिले
और तेरी आवाज सुननेलायक कानोमे पहुँचे

आवाजें आ रही हैं
मगर उसकी नही जिसकी आनी चाहिये

'' टेक केअर कल इसी फ्लॅटफॉर्मपे जिन्दा मिलते हैं ''
'' सी यू ''
''फेंक बॉलसकी दिलखेंच अदा देख ''
''मैं कॉल कर लूंगी ''
''वाट पाहुनी चश्मा फुटला तेव्हा कळाले
काय ?
डोळे उल्हासनगरचे होते ''
'' पि जे पी जे ''
''ठोक्याने ठोका उसका नहीं मलाल
हज्बंडने रेप किया तो दिल टूट गया ''
''ऐस्या  टुटा या फिर वैस्या टुटा
मर्दोंके हाथसे टूटना औरतकी किस्मत हैं ''
''जरा जरा घूम घूम -हिमेश रेशमियांकी अनुनासिक कोशिश पुरे उन्मेषमे -जरा घूम घूम ''
''हाताला चुना लावून गेली साली अपना नसीब
नसीब तो लेके गयी नहीं ना ?
वो तो साला अपने मौतके साथ जायेगा ''

मुझे कविता महाजनकी शायरीपे बोलना हैं
इसिलिये मैं कविता महाजनकी शायरी याद करनेकी कोशिश कर रहा हूँ ।
मैं लोगोंकी आवाजे न सुननेकी कोशिश कर रहा हूँ ।
और मैं तुम्हारी आवाजकाभी  इंतजार कर रहा हुँ ।
जो लाखो कोशिशोंके बावजूद मोबाइल पकड़ नही पा रही हैं ।

मैं कम्युनिकेशन इंडस्ट्रीको गालियाँ  दे रहा हूँ
मैं मोबाईल नेटवर्क को गालियाँ दे रहा हूँ
मगर ये जगह हैं की अड़ियल हैं
और मैं तेरी न पहुँचनेवाली आवाजपे अटका हूँ ।

१६
मौतके कई सलीके होते हैं

हाथोंपे इत्र मलकर आनेवाली मौत
आँखोकी दीवारे डरमे पिघलानेवाली मौत
साँसोंपे सवालिया निशान लगाकर नाकको रगड़ानेवाली मौत
पैरोंको सही जगह टाँग मारनेवाली मौत
गलेमें प्यासको सड़ानेवाली मौत
''बर्दाश्तीकीभी  एक हद होती हैं '' ये मुँहसे उगलानेवाली मौत

मेरी मौतका सलीका कौनसा मैं नहीं जानता

लोंग चाँवल की तरह ट्रेन की डिब्बेकी थालीमे इकठ्ठा
और मौत कुछ लोगोंको कंकड़ की तरह चुनकर
जिंदगीसे  बाहर फेंकनेकेलिये तैयार

१७

कविता महाजनको मिले हुये पुरस्कार समारोहकी साइटपे मैं खड़ा
म सु पाटील सर की खातिर बाइट देनेकेलिये
''औरतोंकी गुलामी स्पॉन्सर करनेवाले बिल्ड़र्स कौन हैं ?''
''ऑल माय टीका पिछवाड़ा मर्दाना या जनाना ?''

मैँ चिमटे लेना टालते  हुँये रुईयाके सभागृहमेँ तैर रहा हूँ
भाषाके पानीमें
जिसे छेद हैं
और जो डूबनेवाली हैं
समीक्षा मतलब उस छेदसे पादना

मैं पाद रहा हूँ
और तू सामने
कुर्सीमे बैठकर
गरुरसे मुझे देख रही हों

मैं  पहली दफा समीक्षापे खुँश हूँ

वो नही होती
तो तुम नहीं आती

कौवेके पंख मोरपंख बन रहे हैं
मेरी भाषाचाल हंसकी चाल चल रही हैं

तेरा खूबसूरत चेहरा सामने हैं
जो मेरी समीक्षाको कविता बना रहा हैं

१८
रामदास भटकल अपने दिलकी धामधुम चिन्तामे उड़ा रहे हैं
पुष्पा भावे समाजवादका कड़बा चबा चबा के उसे अपनी सज्जनता में घोल रही हैं

मराठीमे हर कोई मुझे समीक्षक बनानेपे तुला हैं
और मेरे कवि की हस्ती मिटाने चला हैं

अरुण म्हात्रे वहीँ करके खुश हैं
ये किस तरहकी खुँशी हैं समझना मेरे परे हैं

मैं तुम्हे देख रहा हूँ
मराठी कवियोंका पॉलिटिक्स देख रहा हूँ

एक खूबसूरत हैं
एक बदसूरत हैं
एक सॉफ्ट जिंदगी हैं
एक सॉफ्ट मर्डर हैं

ये डर हैं या जेलसी हैं
मैं नही जानता
इतना जानता हूँ कि
ये एक फॉलसी हैं
जो पॉलिसी की तरह निरंतर चल रही हैं

अचानक एक मेसेज आता हैं
पुष्पा भावे जी खड़ी हैं
बैठे हुए आवाजमें कह रही हैं
''मुम्बईमे बमस्फोट हों चुके हैं
मगर हम अपना प्रोग्राम जारी रखेंगे ''

बॉम्बस्फोटके  बादभी भाषा ख़तम नहीं हो रही हैं
और मैं खुदको पूँछ रहा हूँ
'' भाषा ख़तम नहीं हुई है
तो लोग बातचीतकी बजाय बॉम्बस्फोट क्यों कर रहे हैं ?''

१९
प्रोग्रामके अंतमे संत ज्ञानेश्वरका पसायदान
और बाहर बिखरी हुई लाशे और उनके मौतका स्पॉन्सर्ड सामान

तू इस सिच्युऐशनपे खुश नहीं हैं

जुम्मा जुम्मा प्यार
और दहशत का वार

पसायदान कीड़ेकीतरह रेंगते हुए आ रहा हैं मेरी तरफ
मैं पसयदानका फैन हूँ
फिरभी मुझे अजीब लग रहा हैं

एक तरफ संत
दूसरीतरफ हंट
तालसे मिला ताल हालसे मिला हाल
इस काल कालमे कौन खिंच रहा हैं हमारी  खाल

किसीने स्फोटोंसे ब्रेकिंग न्यूज़ लिखी हैं
और हमारे लाइफके सारे कॉपीराइट हमसे छीने गये हैं ।

२०
मन मजबूत कर
प्राण स्ट्रॉन्ग कर
आत्मा अमर कर
अस्तित्व अजोड कर
क्यूंकि आज
तेरे मुंबईकर होनेकी कसौटी हैं

२१
जिसे मौतने छुआ नहीं
ऐसा दुनियामें क्या हैं
हम हैं मौतके सामने परोसी हुई थाली
जिसे एक ना एक दिन
मौत खानेवाली हैं

मुझे इस बातका ग़म नही हैं कि
मैं थाली हूँ
मगर ये जरूर चाहता हूँ की
आखरी बार जब मुझे वो खाये
तब मैं स्वीट डीशमें तब्दील हों जाऊ

२२
प्रोग्राम ख़तम हों चूंका हैं
और तुम
मेरे मोबाईलकी की तरफ रही हों

तुम्हारा आउट गोईंग बंद हो चूका हैं
और तुम्हे घरवालोंकी सिक्यूरिटी कन्फर्म करनी हैं

तुम्हारी सफेद कमीज  जो मुझे उड़ता हुआ बादल लग रही थी
अब अचानक भूतनीकी आखरी फॅशन लग रही हैं

हवा कपड़ेकी तरह आवाज करके फट रही हैं
और सूरज किसी नाटे आदमीका कद लग रहा हैं

हॉलमे खड़ा हर बंदा
डरमे नंगा

पूरा प्रोग्राम एक विटंबना लग रहा हैं

एक टेररिस्ट अटॅक अगर
मेरा प्रोग्रामकी तरफ देखनेका नजरिया बदलता हैं
तो क्या वो कामयाब हैं ?

हर कोई सहमासा हैं
तो क्या ये उस अटॅककी सफलता हैं ?

तू तेरा दुपट्टा हवाओंमें कम
और फिक्रमे ज्यादा उड़ा रही हो

तुम्हारी उंगलिया मोबाईलपे बरस रही हैं

तुम अचानक भोपळेमे बैठी हुई
बुढ्ढी लग रही हों

म्हातारे म्हातारे कहाँ जा रही हों
बेटा बमस्फोट हुए हैं
और मोबाईल नही लग रहा हैं तो
मेरी बहन जिन्दा हैं की नहीं वो देखने जा रही हूँ

बेटी बेटी कहाँ जा रही हों
अंकल  बमस्फोट हुए हैं
और मोबाईल नही लग रहा हैं तो
मेरे माँबाप  जिन्दा हैं की नहीं वो देखने जा रही हूँ

हॉलमें आया हुआ  हर शख्स भोपळेमें
और हर शख्सियत
डरमे और सर्चमे
टुनुक टुनुक

२३
 मैं कीज दबा रहा हूँ
P R I Y A B H A N J I
9824240998

कम्युनिकेशन क्रायसिस
इस रूटकि सारी लाइने। .... में गयी हैं

प्रिया तुम कहाँ हों ?
होंठ सुन्नतामे बिखर रहे हैं
भाँजिकी चिंता सरमे मस्तिष्क पटक रही हैं

कहाँ होगी कैसे होगी किसके साथ होगी ठीक होगी नही होगी कही फंसी तो नही होगी निकल रही होगी अटक रही होगी सोच रही होगी की डर रही होगी काँप रही होगी या नीडर होके बाकि लोगोंको दिलासा दे रही होगी जिंदाभी होगी जिन्दा तो होगीही मेरी भांजी मर नही सकती उसका घर आनेका टाइम मॅच हो रहा हैं तो ;;;;;;;;तो


अबे साले मोबाइलवालों कर क्या रहे हों ?
अभी कॉन्टैक्ट नही करवाओगे तो कब करवाओगे ?
कहीं मेरी मोबाईल कम्पनी तो गलत नही हैं ? नहीं एयरटेल की रिपोर्ट अच्छी हैं
अबे एयरटेल कनेक्शन जोड़

मैं भाषा पटक रहा हूँ
और प्रियाके पास मेरा एक लफ्जभी पहुँच नहीं पा रहा हैं

ये कम्युनिकेशन एज हैं या
फॉलिंग नेटवर्क हैं

कहीं  ऐसा तो नही है की
कम्युनिकेशनके सारे टॉवर्स उड़ा दिये हैं
बम हैं
कुछभी उड़ा सकते हैं

हम दोनों नेटवर्क नेटवर्क खेल रहे हैं
और नेटवर्क हैं की
नही रहा हैं

२४
अचानक तुम्हारा रोना शुरू हुआ हैं

हमारे रोमांसकी नॉवेल
अचानक टेररिज़मके रद्दीमे
गोते खा रही हैं

मुझे समझमे नहीं रहा हैं की
हम क्या करे

तुम झुकी हो

दयाघन
दो बून्द कम्युनिकेशनका पानी दे
बस  सिक्युरिटीका मेसेज आने दे
या फिर मेरे कॉल को उनके कान चुमने दे

२५
हम मोबाईल लगाते लगाते
रस्तेपे पहुँच चूँके हैं

मेसेज नही हैं तो खुद पहुँचते हैं
पहले घर फिर जहाँ जहाँ गए वे प्लेसेस

एक खौफ हैं
कहीं उसी ट्रेनमे चढ़ गयी हो तो

एक कवि ऐसे माहौलमेंभी सौ प्रतिमानोंकी कल्पनासे भरी
कविता मुझे सुनानेकी कोशिश कर रहा हैं
मेरी दिक्कत ये हैं कि साथमे तू हैं
वर्ना एक थप्पड़ लगाकर उसके गांडसे
सारा प्रतिमावाद निकाल लेता

वूमन जन्टलमन बनाही लेती हैं

फिर जो स्यूसाइड बॉम्ब बनती हैं
उनको कौन बिगाड़ता हैं ?

२६

आसमाँमे एक सफेद बादल चल रहा हैं
उसे पताभी नहीं होगा कि
नीचे किसीने खूनके बादल बिछा दिये हैं

मैं पेड़ देख रहा हूँ और तुम्हारे हाथका मोबाईलभी

दोनोंको फलका इंतजार हैं
और फल नहीं रहा हैं

फर्क इतनाही हैं कि
पेड़ सब्र्से फलका इंतजार कर रहा हैं
और इंसान डेस्पेरेट हैं

वरना अच्छे कर्म करके जन्नत जाने की बजाय
जिहाद में पार्टीसिपेट होके
तुरंत जन्नत जानेकी फ़ास्ट लोकल कौन पकड़ता ?


२७ 

तुम ऐसे चल रही हो 
जैसे किसीने तुम्हारा ऑक्सीजन बंद किया हैं 
तुम्हारी सूरत नॉन ओज़ोनाइज़्ड बन रही हैं 

सारे इंसान कुपोषणसे पीड़ित चूहोंमें तब्दील हो चूँके हैं 
बिल्लियाँ हज करने भाग गयी हैं 
कानून टीनपॉट डिब्बेकीतरह उड़ाया गया हैं 

हमारी जान मुट्ठीमे 
और मूठ म्यूट हैं 

कमर्शियल चींटियाँ जो गांडसेभी शक़्क़र  निकालनेकी ताकद रखती थी 
कमर्शियल  श्रद्धांजलि मुँहमे पकड़कर 
अपनी अपनी गाडियोंमे हिलडुल रही हैं 

मुंबई बन गयी हैं मृत समुद्र 
और रास्ते नमकके तरंग 

टायटेनिक डूब रहे हैं 
और किसीको पता नहीं 
आसपास पानी हैं या  ख़ून 

डराना जिनका मकसद था 
वो डरा चूँके हैं 
और जिनको डरना नही था 
वो बिना प्रॅक्टीस डर रहे हैं 


२८ 

तुम चीख रही हों 
और तुम्हारी चीख 
हवाको चीरके साँसे तलाश रही हैं 

सबकुछ काला पड़ रहा हैं 
जैसेकि किसीने पुरे मानवताके चेहरेपे कालिख पोती हों 

तुम्हारी चीख कौनसे दरवाजे खटखटा रही हैं 

फिर आसपास पब्लिक हैं ये सोचके तुम नॉर्मल हों चूकी हो 

कोई देख नही रहा हैं फिरभी 
कोई देख रहा हैं ये एहसास जारी हैं 


२९ 

कोई किंगकौंग हैं 
जो गुदगुदी करके 
मेरे कानोमे कह रहा हैं 
''पोपट। … पोपट ''

हम ढूंढ़ रहे हैं टॅक्सी 
और मस्तिष्कमे उड़ रहे हैं तोते 

हर टॅक्सी हैं हाउसफुल 

मुम्बईमे कुछभी हो 
हाउसफुल जरूर हो जाता हैं 

मुझे मुम्बईपे गुस्सा रहा हैं 
मुझे टेररीस्टोपे गुस्सा रहा हैं 
मुझे मेरे इंसान होनेपे गुस्सा रहा हैं 

सब हमारी लेनेपे तुले हैं 
और हम हैं की अवेलेबल हैं 

३० 
हमारा खानदान एक केऑसमें कैद हैं 
और हमे उन्हें उस केऑस से छुड़ा के लाना हैं 

डर निश्चयमें तब्दील हो  रहा हैं 
तुम्हारी रोनी सूरत लड़ाकू बन रही हैं 

अब हर रिश्तेदारको कॉल किये जा रहा हैं 
और हर रिश्तेदारभी वही कर रहा हैं 

अच्छी बात ये हैं की 
कॉल लग रहे हैं   
३१
इस देशमें हर कोई मॉयनॉरिटीमे हैं
बॉम्ब खानेवालेभी
और बॉम्ब लगानेवालेभी

बस एक बारिश हैं
जो मेजॉरिटीमें हैं
जो असली सुलतान हैं
और जिसका कहना हर किसीको मानना पड़ता हैं

बारिश शुरू हुई हैं
शायद ख़ून और पानीके बीचका फर्क समझाने आयी हैं

पूरी फुटपाथ कीचड़ बन रही हैं

नीचेसे  टेररिस्ट उपरसे बारिश
ये द्विमुखी कहर
इस शहरका चेहरा तबाह कर रहे हैं
और हम किच्चडसे लतपथ

अग्निपथ !कीचड़पथ!दहशतपथ !

क्या हुआ गर तुम्हे टॅक्सी   मिल रही हैं
क्या हुआ मोबाईलकी बैटरी बुझ रही हैं

कदमोपे भरोसा रख चलता रह अविरत
अग्निपथ !कीचड़पथ!दहशतपथ !

३२

टेरेरिस्ट लोगो ,
मेरे वतनके लोगों ,
पराये वतनके लोगों ,

तुम लोगोंकीं नजरमे हम कौन हैं ?
बलीके बकरे ?
फतेहके झेंडे ?
न्यूजका मांसमटेरिअल ?

अबे सालों हम लोगोंने तुम्हारा बिगाड़ा क्या हैं ?

मैं उन लोगोंको  पुंछ रहा हूँ
जो हमारी जान लेने आये  हैं 
और वेभी 
सरकारकीतरह
बिना जवाब दिए
न्यूज बनाकर 
चल दीये हैं   

३३

फतेह अली फतेह

तह मालूम नही इसीलिए दहशत शत - प्रतिशत

क्या दहशत लत बन चूँकी हैं ?

क्या इस देशको फिरसे  मुतारी बना दिया गया  हैं?
क्या फिर एक बार कोई आके
मौतको पेशाबकीतरह मुँहपे मूतके चला गया हैं? 

३४ 

निगोशिएशन्सके टेबलपे आनेके लिये 
कितना विजडम चाहिये ?
और बॉम्ब चुसचबानेकेलिये 
कितनी मूर्खता ?

इस देशमे कोई मूर्खोंको शहाणा बनाने  नही जाता 
इसीलिये इस देशमे 
एक मूर्खभी प्राइममिनिस्टर बन सकता हैं

मुझे पता नहीं
 मेरी  तरफसे 
कोई दहशतवादी लोगोंकें साथ  निगोशिएशन कर भी रहा हैं या  नहीं ?

बस एक पॉवर पॉलिटिक्स चल रहा होगा  
जिसमे मेरी मौत 
कमोडीटीकीतरह निगोशिएट हो रही होगी  

३५ 

ये किसका बदला हैं ये किस तरहका बदला हैं ?
कौन ले रहा हैं और किसकी तरफसे ले रहा हैं ?
किसपे ले रहा हैं और क्यों ले रहा हैं ?

ये किसका दिमाग घूंमा हैं ?
किसके मस्तिष्कमे छेद हुआ हैं
और किसके मनमे भेद  हुआँ  हैं ?

ये किसका स्वाभिमान हैं और किसकी गर्दन मरोड़ी जा रही हैं ?
किसपे बलात्कार हो रहा हैं और किसकी गांड फोड़ी जा रही हैं ?

मैं पूँछ रहा हूँ 
और मेरी आँखे सेप्टिक होके 
मेरा ब्रेन छील रही हैं 


३६ 

एक झोल हैं 
जो समझमे नही रहा हैं 

एक गिला कपड़ा हैं 
जो सूख नहीं रहा हैं 

एक बोल हैं 
जो बोल नहीं रहां हैं 

एक गोल हैं 
जो दिखायी नहीं दे रहा हैं 

बस एक टोल हैं
 जो जबरदस्ती वसूला जा रहा हैं 

३७ 

टैक्सियां रही हैं 
टैक्सियां जा रही हैं 

जिंदगी रही हैं 
जिंदगी जा रही हैं 

बस एक इंतजार हैं 
जो  ना कहीँ जा रहा 
ना कहींसे रहा हैं 

बस तुम्हारे मेरे दरम्यां  ठहर गया हैं 

३८ 

हम क्या कर सकते हैं 
तुम निराश आँखोंसे पूछ रही हों 
और मैं आँखे झुकाये शर्मसार खड़ा हूँ 

एक चेक संकटग्रस्त सिग्नेचर लेके 
दहशत कॅश करने भेजा जाता हैं 
और ये शहर उसे हमारे ब्लडबैंकमे भुगतानता हैं श्री  ?

तुम निराश आँखोंसे पूछ रही हों 
और मैं आँखे झुकाये शर्मसार खड़ा हूँ 
मैं शर्मसार हूँ 

मौतसेभी परेशान होनेवाली इस शहरकी कमर्शियल इन्सानियत और इंसान 
और औरोंको मारकेभी अपने पेटका पानी भी हिलानेवाले ये दहशतवादी  कुल लोग 
इन दोनोंमें ज्यादा बुरा कौन हैं श्री  ?

तुम निराश आँखोंसे पूछ रही हों 
और मैं आँखे झुकाये शर्मसार खड़ा हूँ 
मैं शर्मसार हूँ 

३९ 

कुछ तो गलत जा रहा हैं
मगर क्या ?
गलगलत जा रहा हैं 
मगर क्या ?

बस दहशत बनकर रहा हैं 
मगर क्या ?

४० 

क्या धीरज खतम हो रहा हैं ?

कैपिटलिज्मने कॉम्पिटिशन तो लायी 
मगर उसे हॅंडल करनेकेलिए जो संयम चाहिये 
वो देना भूल गया 

क्या  लोगोंका संयम ख़तम हो चूका हैं ?

या फिर  ऐसी जगहपे वेभी फँसे हैं 
जहाँसे  वे खुद निकलना नहीँ चाहते ?

कहीँ ऐसा तो नहीं हैं की 
इन लोगोंकों दौड़ना नहीं हैं 
और ऑलिम्पिकका गोल्ड मेडलभी चाहिये ?

ऑडियंस को मारके खेल बंद हो जाता हैं 
रेस नहीं 

जो ऑडियंस को मारते हैं 
वो किसीको हराते नहीँ 
बस खुदसे हार जाते हैं 

क्या ये  सब लोग 
खुदसे हारे हुये लोग हैं  ?


४१
हमे किसीभी चीजका 
एस दिखाई देता हैं 
चेहरा नहीं 
इसीलिए हम त्वचा कुरेदते रहते हैं 
इस आशामे की एस खुलेगा तो  
शायद भगवान हमें मिलेगा 
मगर ये हमारी बदकिस्मती हैं कि 
हमे भगवानकी  बजाय सिर्फ एक मुखौटा मिलता हैं 
जो हमें इचिंग देता हैं और गार्डभी 

हम सब कबसे 
या तो ऊँगली कर रहे हैं या खुजली 

ये बमस्फोट खुजली हैं या ऊँगली ?

४२
''जो राज करना चाहता हैं इस्लाममे
वो मरनेकी तैयारी करकेहि उतरता हैं सियासतमे
और जो राज करना चाहता हैं इस्लाममे
वो मारनेकीभी तैयारी करके  उतरता हैं सियासतमे
इसीलिए आम मुसलमान
कभीभी मर सकता हैं सियासतकेद्वारा  इस्लाममे
और जो सियासत करता हैं उसका तो मर्डर या खून होके
मरनाही या वतन छोड़के भागनाही  तय  हैं एकदिन इस्लाममे

हमारी हिस्ट्री खोलके देखो
हमारे सियासतोंकी अभीकी हिस्ट्री देखो
जितना आम आदमीका खून हमारे सियासतमे बहा हैं
शायदही किसी औरके इतिहासमे बहा हो

जब  हम अपनेही लोगोंको नही छोड़ते
तो हम जिनको काफिर मानते हैं उनको क्या छोड़ेंगे ? ''

एक मौलवी अपने बेटेको समझा रहे हैं
और मुझे कुछभी समझमे नही रहा हैं

मुझे समझमे नहीं रहा हैं की
वे उदास हैं
या हेल्पलेस ?

हम सब टॅक्सीका इंतजार कर रहे हैं
और टॅक्सी नहीं रही हैं

४३

पता नहीं मुझे यार क्या हुआ हैं
डरने शायद दिमागको छुआ हैं

इन्सानोंकी भीड़मे टॅक्सीका इंतजार
क्या दिल इन्सनियतसे इतना दूर हुआ हैं ?

मुझेभी सिर्फ मेरी भाँजिकी पड़ी हैं
बाकी सारा जहाँ मेरेलिए मरा हैं

इतना  कैसे मैं सेल्फिश बन गया
क्या मेरा शायर होना सिर्फ दिखावा हैं ?

अगर ऐसा है तो बात फिर साफ हैं
बड़ी बड़ी बातोंको हमने गांडमे डाला हैं

४४

''बस बस भगवानकेलिये चुप हो जा
क्या बक रहा हैं
सब देख रहे हैं ''

तुम कह रही हो
और मैं होशमे रहा हूँ

''क्या मैं कुछ बक रहा था ?''
मैं पूछ रहा हूँ
और तुम ताज्जुबसे मुझे देख रही हों

''तुम्हे पता नहीं तुम क्या कह रहे थे ?''
''क्या ?''
''कुछ कविता जैसा गधे एकदम डिरेल टेंशन मत ले
हम प्रियाको ढूंढेंगे ''
'' हाँ ढूंढेंगे टॅक्सी मिल नहीं रही हैं
फिरभी हम ढूंढेंगे ''

४५

मैं डिरेल हूँ
तुम डिरेल हों
वे डिरेल हैं 
सारा जहाँ डिरेल हैं

और शायद डिरेल होनेका
हम सब
एकदूसरेसे बदला ले रहे हैं

४६

मैं हमेशा कहता था
शायरी करनी सीखना हैं तो मुसलमानोंसे सीखे
अब क्या सीखनेकेलिये कहूँ ?
या फिर ये कहूँ की
मुसलमान दो तरहके होते हैं
एक जिनको शायरी आती हैं
और जो शायरी जीते हैं
और दूसरे वे जिनको शायरी तो आती हैं
मगर  शायरी  जीना नहीं आता

क्या ये हमला उन लोगोंने किया हैं
जिनको शायरी जीना नहीं आता ?


४७

क्या बकवास हैं
नहीं ये खास हैं
गहरी साजिश हैं
ग़लतफ़हमी हैं
कौन पाल रहा हैं
वही जो चला चाल रहा हैं
जाने दीजिये हमें क्या
कल अपना नंबर आया तो क्या
ये पुरे राष्ट्रका सवाल हैं
नहीं ये घरका बवाल  हैं
पर हम क्या कर सकते हैं


हम क्या कर सकते हैं हम क्या कर सकते हैं हम क्या कर सकते हैं


४८

टॅक्सी नहीं रही हैं
जो रही हैं हॉउसफुल्ल रही हैं

मगर इंसान इंसांनोसे इंसांनोमे जा रहे हैं
इंसान इंसानोंसे इंसानोंमे रहे हैं

इंसान इंसानोंसे इन्सानको देख रहे हैं
इंसान इंसानोंसे इंसानोंमे झुक रहे हैं

इंसानोंसे इंसान इन्सानको ख़त्म कर रहे हैं
और इंसानही इंसानोंको इंसांनोंसे बचा रहे हैं

हम इंसान हैं
ये सच कितना साफसुथरा और नंगा हैं

फिर वो क्या हैं
जो इस नंगेसे डर रहा हैं ?

४९

मैं कपडे ठीक कर रहा हूँ
और देखभी रहा हूँ

सब कपडोमे हैं
मैं ,तू , मुसाफिर

क्या हमारे कपड़ोंने सारे नंगे सच
खतम किये हैं ?

५०

वो क्या था
जिसने कपडा बनाया

शब्द  ?
गार्डन ?
ऑर्डर ?
मनाई ?
ज्ञान ?
फल ?
फल का भोजन ?
शैतान ?
या सिडक्शन ?

क्या किसीके शब्दोने  भड़काया ?
या क्या जन्नतकी कोई गार्डन  नजर आयी ?
या फिर किसने ऑर्डर दी  और  वहीँ मान ली गयी  ?
या हथियारोंको छूनेकेलिये की हुई माँबापकी या  सरकार की मनाई तोडना थ्रिलिंग लगा ?
या फिर किसीने डायरेक्ट या इंटरनेटसे ज्ञान दिया ?
या फिर किसी शैतानने गुमराह किया ?
या फिर जवानी  जिहादकी बाते सुनसुनकर सीड्यूस हो गयी  ?

५१ 

किताबे इन्सानोंको  किताबोंमे अनुवादित करती हैं
और पहला बम वहीँ लगता हैं

५२ 

क्या हम किताबोमे हुए  ट्रांसलेशनका अंजाम हैं
क्या मैं ये समझू कि
कुछ किताबे आयी
बम लगाके चली गयी ?

इंटरटेक्स्चुलाइज़ेशन का ये अंजाम  हैं
तो फिर क्या होली क्या अनहोली

५३ 

तो क्या हम सब क़िताबोंद्वारा किया गया मर्डर हैं
क्या ये लोग किताबोंकी की हुई  खुदकुशी हैं  ?

५४ 

एक खाली टॅक्सी रही हैं
एक हवाका काला झोंका रहा हैं
जो आल्हाददायक हैं
मैं मेरे साँसोको लेके बैठ रहा हूँ
उन्हेंभी चैन रहा हैं
तुम मुड़कर रुईया कॉलेजकी बिल्डिंग देख रही हो
तुम क्या ढूँढ रही हो ?
औरते क्या कब क्यों ढूंढेगी पता करना मुश्किल हैं
मैं चुप हूँ
तुम अपनी काली आंखोमे सफेद सन्नाटा लेकर
टॅक्सीमें बैठ रही हो


५५ 

''क्या हमें सचमुच शादी करनी चाहिये ?''
''क्या हुआ ?''
''शादीभी संन्यासभी अजीब लग रहा हैं''
''इसमें क्या अजीब हैं शिवजीने शादी नहीं की थी ?देख मैं शैव संन्यासी हूँ वैदिक नहीं ''
''कल तुम हिमालय गये और बमस्फोट हुए तो अकेली कैसे फेस करूंगी ?''
''हिमालयपे कॉल करना ये थोडीही शिवजीका ज़माना हैं?''
''नेटवर्क नहीँ मिला तो "
''अब कौनसा मिल रहा हैं ?''


५६ 

एक सन्नाटा अचानक फैला हैं तेरे मेरे दरम्यां
मैं मेरी पार्वती ढूँढ रहा हूँ
और वो मुझे मिल नहीं रही हैं
तुम पार्वती हो तुम पार्वती नहीं  हो तुम पार्वती हो तुम पार्वती नहीं हो
''कहाँ खो गये शिवजी मज़ाक कर रही थी
पार्वती हूँ तो इकवल इकवल खेलूंगी भैया महालक्ष्मी लेना ''


५७ 

तुम्हारा आना
किसी खुदासे कम नहीं हैं
तुम दुनियाकी पहली लड़की हो
जिसने मुझे कहा
''तुम सिर्फ लिखो और मेडिटेशन करो
मगर लिखना ऐसा
जो रामायण महाभारत की तरह विशाल हो और गहरा भी
मुझेभी लगना चाहिये की
मैंने किसी व्यास वाल्मीकि जैसे किसीसे शादी की हैं ''

अड़ॉहॉकॉ को 'बहोत विशाल हैं '' कहके
पॉपुलर प्रकाशन ने रिजेक्ट किया हैं
और मैं तुम्हे ये बात बता नहीं पा रहा हूँ

तुम्हारा गोरा चेहरा
जो मेरे काले रंगसे बिलकुल मिसमॅच है
थोड़ा लाल हो रहा हैं

लोग हम दोनोंको मजाकमे
 ''ब्लॅक ऎण्ड व्हाइट टीव्ही ''
कहते हैं
और इस टॅक्सीमें बैठकर
हम दोनों बिलकुल
आउट डेटेड हुए
ब्लॅक ऎण्ड व्हाइट टीव्हीकी  तरह
जा रहे हैं

५८   

ना तुम बोल रही 
ना मैं बोल रहा हूँ 

फिर हल्की हल्की आवाज 

''सब सेफ हैं 
सब सेफ होगा 
सब सेफ होगा ना श्री ?''

तुम कह रही हों 
और अचानक मैं कुछ जवाब दूँ 
इससे पहले खामोशीके समुंदरमे 
पद्मासन लगाकर बैठ गयी हो 

५९  

ये इश्क़ नहीँ आसाँ 
और ये सिटी हैं मुश्किल 

और सिटीसेभी महामुश्किल होता हैं 
अटॅक 
फिर वो चाहे 
टेररिस्ट हो या रेनिस्ट 

इस शहरमे सब जिनेकेलिये जाते हैं 
और मर जाते हैं 

६० 

मैं मौतसे चेहरा हटाके 
जिंदगीकी तरफ मुड़ना चाहता हूँ 

मेरेलिये जिन्दगीका दूसरा नाम तुम हो 

मैं तुम्हे देख रहा हूँ 

तुम कितनी सुन्दर हो 
मुझे कभी कभी यकीनही नहीं होता कि
तुम मेरे लाइफमे हो
करीना कपूरसेभी बेहतर हैं तुम्हारी गोरी स्किन
ऐश्वर्या रॉय से भी खूबसूरत हैं तुम्हारा चेहरा
जबसे तुम आयी हो मैंने टीव्ही देखना बंद किया हैं

मैं ऐश्वर्याको मिल चूँका हूँ
मैं करिनासे हाथ मिला चूँका हूँ
मगर सच कहता हूँ
तुम्हारी जैसी कोई नहीं है

खूबसूरतीका गरूर किसमें नहीं होता
सबमें होता हैं
मगर तुममे एक अदब हैं

तुम लाजवाब हो

तुम्हारे खूबसूरतीकी आबोहवा टॅक्सीमेभी फ़ैल रही हैं
और टॅक्सी ड्राइवर
उसकी गिरफ्तमे रहा  हैं

 ड्राइवरको रास्ता समझानेवाली तुम्हारी हर अदा खूबसूरत लग रही हैं 

''ऐसा तो ऐसा वैसा तो वैसा
मॅडम आप जैसा बोलोगी वैसा ''

तुम्हारी नाजुक उँगलियाँ नाँच रही हैं
और स्टेरिंग टॅक्सीको जोखिममे डालके डांस कर रहा हैं

६१  

हर कोई जल्दीमें हैं
हर कोई भीड़मे हैं

अचानक तुम्हे कुछ याद आता हैं
एक बिजली तुम्हारे चेहरेपे बिखरती हैं

''क्या हुआ ? ''
'' आई पहलेही गयी हो तो … ''
''मगर महालक्ष्मी लेट जाती हैं ''
'' मगर उससे पहलेवाली ट्रेनमे बैठी हो तो। ....... ''

तुम्हारी परेशानी सारे फलसफाओंको डिफ्यूज कर रही हैं

बारिश जो हमेशा रोमॅंटिक लगती हैं
हिजड़ेका डांस लग रही हैं

एक शकका समुन्दर
एक शवोंका दर्या लेकर उल्टा बहता हुआ रहा हैं
और आँखोंमे चकनाचूर हो रहा हैं
रिश्तेदारीमें पले हुए मेरे खानदानी कंधे
दर्दसे तिलमिला रहे हैं

मैं मोबाईल लगा रहा हूँ
और मेस्सेजपे मेस्सेज भेंज रहा हूँ

मैं जानता हूँ
पूरा नेटवर्क डीकन्स्ट्रक्ट हो चूका  हैं
फिर भी एक आशा हैं कोई एक तंतु
कोई एक बिटरेखा कोई एक वाहिनी काम करेगी
और इस ज्यामको तोड़ेगी

कीज दबाई जा रही हैं
और मोबाईल किसी तालेकीतरह मुझपे हँस रहा हैं

६२  
ऐसा नहीं हैं कि भीड़ पहली दफा देख रहा हूँ
ऐसाभी नहीं हैं कि ट्रॅफिक पहली बार जाम हुआ हैं

फिरभी भीड़पे ट्रॅफिकपे गुस्सा रहा हैं
मुंबईमें इतनी सारी भीड़ हैं इसीलिए तो बमस्फोट किये गये हैं

सबको ज्यादा चाहिये
पैसा
फेम
और टेरेरीस्टसको ज्यादा बम और डेड बॉडीज
जितनी ज्यादा डेड बॉडीज उतना ज्यादा इम्पैक्ट
और जितना ज्यादा इम्पैक्ट उतनी ज्यादा फेम

ये दिल मांगे मोर
माँगो भाई
जिसके पास ज्यादा हैं
 उसीके पास फेमका फायदा  हैं
हम तो पैदल चलनेवाले
हमारेलिये कानून हैं कायदा हैं

६३  

हम मेन रोडपे पहूँच चूँके हैं
बारिश नहीं होती तो पैदलही चलते .......

सामने टॅक्सीपे टॅक्सी
बसपे बस
कारपे कार
केऑसपे केऑस
चढ़ रहा हैं
और हर केऑस अपनी गांड दूसरे केऑसपे पटक रहा हैं

स्पीडको ब्रेक लगा हैं
गति कोलॅप्स हो चूँकि हैं
और इमरजन्सी हर वेहिकलमे
शटर ओढ़के बैठी हैं

''उतरे ?''
मैं पूछ रहा हूँ
'' तुम्हे यकीं हैं हम चलके फ़ास्ट पहुँचेंगे ?''
मैं जवाबमे टॅक्सीसे उतर रहा हूँ


६४
मैं पैसे अदा करके सामने देख रहा हूँ

सारे वेहिकल्स पैदल चल रहे हैं
और पैदल इंसान उनसे फ़ास्ट
उनसे आगे निकल रहे हैं

मैं लाइफमे पहली दफा ऐसा नज़ारा देख रहा हूँ

क्या ये टेररीझम हैं
जो पैदल हैं
और  मॉडर्निटीसे पोस्टमॉडर्निटीसे इंटरनेटसेभी तेज जा रहा हैं ?

६५
रास्तेभर  फैला हुआ  paralysis
और हर कोई अपने  अपने  जिंदगीके पैर
बचाता हुआ

सबको आगे निकलना हैं
फिर आगे कुछभी हों

जिन्होंने जिन्दगीको कुछ  बननेकी रैट रेस बनाया था
उन्होंने ज़िन्दिगीको अब बचनेकी रैट रेस बनाया हैं

चूहें फिरसे अपनी औकातमे आके दौड़ रहे हैं

६६
बादल अपनी अपनी दिशाकी ओऱ जा रहे हैं
पंछी अपने अपने आशियाने की तरफ जा रहे हैं
पेड़ आकाशकी  तरफ बढ़ रहे हैं

सिर्फ हम ही हैं
जिन्हे पता नहीं हैं
कहाँ जाना हैं

दिशा ट्रेस नहीं हो रही हैं
और स्ट्रेस बढ़ रहा हैं

६७

घर पासमें हैं
मगर सब घरमे होंगे
इसकी कोई ग्यारेन्टी नहीं हैं

रेलवे स्टेशन बगलमे हैं
मगर सब रेलवे स्टेशनपे होंगे
इसकी कोई ग्यारेन्टी नहीं हैं

घर या रेलवे स्टेशन ?

६८

हम चलते चलते
एक चौकमें आये हैं

अचानक एक एहसास
सर पकड़ता हैं

सिर्फ हम दोनों हैं
और पूरा चौक ख़ाली हैं

जैसे किसी गर्भगृहसे
सारे देव भाग गये हों
और पूरा गर्भगृह सुनासूना हों

तुम किसी देवीकी तरह लग रही हों
जिसका त्याग भक्तोने किया हों

सारे इंसान भाग गये हैं
और एक ब्यूटी पार्लर चलानेवाली ब्यूटीशिअन
और कविता लिखनेवाला कवी
चल रहे हैं

तुमने पहली दफा हाथमे हाथ दिया हैं
और मैं उसे तक़दीरकीतरह पकड़के चल रहा हूँ

कुछ तो हैं हमारे दरम्यान
प्यारसे ज़्यादा इश्क़से कम

६९

हमारी आँखे हाथोंमें हाथ देके चल रही हैं
हमारे दिल हाथोंमें हाथ देके चल रहे हैं

और अचानक एक टॅक्सी तपाकसे आके रुक रहीं हैं

मुस्लिम टॅक्सीवाला उतर रहा हैं

'' अबे लवर लोग
ये इश्कका टैम हैं क्या
पूरा बम्बई जल रहा हैं
और तुम दोनों चुम्माचाटीके वास्ते इधर
अबे मजनुकी औलाद
बैठ
ये  मोहमेडन एरिया हैं
मारेंगे काटेंगें और हमारा नाम ले लेंगे
चल बे लैला तुझे क्या अलगसे बताऊ क्या ?''

७०

टॅक्सी चल रही हैं
'' मॅडम सॉरी जबांकेलिये
थोड़ा टेन्शनमे ज्यादा बोल दिया
साब सॉरी ''
''अरे भाई , अच्छाही हुआ
वर्ना हमतो …''
''वहीँच ना इश्क़ ने निकम्मा कर दिया टाइपवाले
सोच निकम्मी हो जाती हैं साब
ये इश्क़ बड़ी कुत्ती चीज हैं साब
पास होती हैं तो कुछ देखने नहीं देती
और दूर होती हैं तो कुछ सोचने नहीं देती  ''

७१

तेरे घरके सामने
 टॅक्सी पहुँची हैं

डरका हिडन नैरेटिव चेंज होके
एक एन्थूसिअज़म का नैरेटिव ओपेनली  फ़ैल रहा हैं

टॅक्सीवाला एक नेक काम करके बिना पैसे लिये जा रहा हैं

कोई मारनेकी फिक्रमे कोई बचानेकी फ़िक्रमे
ये दोनों इन्सानके चेहरे हैं
कभी ये कभी वो

हम पायदान चढ़ते चढ़ते जा रहे हैं
तुम्हे मुझे बिल्डिंगवालोंसे छुपानाभी हैं
और मुझे लेकर उपर जानाभी  हैं

हम तुम्हारे फ्लॅट के सामने
तुम्हारी बहन सामनेसे रही हैं
और तुम्हारे चेहरेसे चिंताकी एक रेखा हवामे गायब हो रही हैं

बहन हम दोनोंके बारेमे जानती हैं
और वो सुरक्षित हैं
ये आजकी सबसे अच्छी खबर हैं

७२ 

''न्यूज़ आयी की  दादरको बमस्फोट नहीं हुआ हैं  मगर होनेका चान्स हैं तो अपुनने रिस्क नही लिया उधरसे पकड़ा एक टॅक्सी वो बोला ना तो दिया कोल्हापुरी लूक तो फिर वो बोला हाँ तो शिर गया सीधा डुबुक टॅक्सीमें गच्चमच्च गच्चमच्च तीन तिघाड़ा काम बिगाड़ा सोचके बिठा दिया सबको और गया धंदेपे सब लोग सेफ ''

तुम्हारे पिताजी बोल रहे हैं बिनधास्त कोल्हापुरी टोनमे

'' आपकी बेटी सेफ पहुंचाई मेरी जिम्मेदारी ख़तम ''

मैं ज्यादासे ज़्यादा पॉलिटिकली करेक्ट टोन मेन्टेन करते हुए

''ज्यूस लेके जाओ खानाही खाके जाओ एक काम करो आज रात हमारे साथ रहो वो एन एन पीमे कहाँ जा रहां हैं तू इतनी रात टांगे तुड़वाके ऐसे इप्रीत हालातमें ! मस्त रस्सा करते हैं ''
''सर मैं नॉनवेज नहीं खाता ''
''अर्र तिच्या आइला कैसे जीता हैं रे ? ''

७३

मैं तुम्हारे पिताजीको ना कह रहा हूँ वो भी पहलेही इनविटेशनपे

मैं कन्फ्यूज़ खड़ा हूँ
वेभी कन्फ्यूज़ खड़े हैं

शायद वे सोंच रहे हैं
दामाद अपने हाथके नीचे नहीं रहेगा
या फिर शराब नॉनवेज कुछ नहीं तो अच्छाही हैं अपने बेटीके लिए
या फिर मेरी नॉनवेज बेटी इसके साथ कैसे निभायेगी खानेको तो देगा मगर साथ खानेका मजा कहाँ ?

मुझे ये विपरीत लग रहा हैं कि हम बमस्फोटके माहोलमे
ये सब डिसकस कर रहे हैं

''खाना नहीं ना सही लस्सी तो पीके जाइये ''

लस्सी पीते समय  मैं तुम्हारे पितजीको आइनेमे देख रहा हूँ
तुम्हारे पिताजी हैंडसम हैं टोटल मर्दाना
घरमे किसीकोभी खरोच नहीं आई इस खुशीसे
उनके होठोंपे सितारे डान्स कर रहे हैं


७४

धीरे धीरे तुम्हारा सारा टेन्शन उतर रहा हैं
हर कोई सेफ हैं
एक राहतकी बून्द पूरी प्यासको बुझा चूकी हैं

तुम्हारा ब्यूटी पॉर्लर
जो एंग्जायटीका हार्बर बन चूँका था
अब फिरसे खूबसूरतीको वेलकम दे रहा हैं

मैं मेरा आधा कंधा
केयर फ्री करके
प्रियाकी तरफ जा रहा हूँ

७५

सारा रास्ता अभीभी  बदबूदार अंगारोंसे साजिश बरपा रहा हैं
और मैं नये नये कॉन्टेक्ट्स ढुँढके
नॉनकम्युनिकेशनके पहाड़को  मिट्टीमे मिलानेकी कोशिश कर रहा हूँ

तुम दूरसे हाथ हिलाके हवामें प्यारकी सुगंध उड़ा रही हो
और मैं मेरे पैरका प्लग निकालके
खुदको चंदनमे तब्दील करनेकी कोशिश कर रहा हूँ

बाय डिअर फिर मिलेंगे
अब किसी अच्छे दिन प्यारमे झिलमिलायेंगे

७६

एयरटेल टू रिलायंस -ज्याम
रिलायंस टू रिलायंस -शायद चालू
ऑरेंज लिया नहीं तो पता नहीं

मेरे कान तरंगोंकी बौछार झेलझेलके
गरम हुए हैं
मेरा हाथ नॉनकम्युनिकेशनने पकड़ा हैं
और मोबाईलसे अलग नहीं हो पा रहा  हैं

और कोई चाराभी तो नहीं हैं
जीना मोबाइलमे मरना मोबाइलमे
कभी इस फाइलमे कभी उस फाइलमे

और फिर अचानक मेरे एडीसे कॉल रहा हैं
''she is safe sir don't worry ''
अचानक पेशाबघर नायगरामे बह चूँका  हैं
चारो तरफ फुहारही फुहार
ऑल इज़ वेल इफ प्रिया इज़ वेल
सेल्फिश थॉट सिक्यूरिटीका पानी पी रहा हैं
और कलेजा गुलाबोंकी गार्डन बन रहा हैं

७७  

अब बची कल्पना
मैं उसे कॉल कर रहा हूँ
अचानक सारे काले बादल
कम्युनिकेशन से शायद हट गये हैं
मोबाईल जिन्दा हो चूँका हैं
और ज़िंदादिली बरसा रहा हैं
उनके कॉलसे मुँहपे आती हैं रौनक
वो समझते हैं मोबाइलका मॉडेल अच्छा हैं

कल्पना सेफ हैं
और मुझे मोबाईल अच्छा लग  रहा हैं

७८ 

क्या हमारी दुनिया हमारे परिवारतक सिमित हैं ?

कोई तो मरा हैं इस शहरमे
वो मेरे जनेटिक कोड़का  नहीं हैं तो क्या

क्या हमारा ख़ून जीन्ससे पतला हैं ?

अगर मैं मेरे परिवार तक सीमित हूँ
तो मुझमें और टेरेरिस्ट लोगोंमें फर्क क्या हैं ?

क्या हमारा सोर्स एक हैं ?
क्या हम एकही सोर्ससे जन्मे हैं ?
कहीं ऐसा तो नहीं हम एक दूसरेको जन्म दे रहे हैं ?

७९ 

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,
 पराये वतनके लोगों ,

अमेरिका व्हिएतनामके कारण घबरा गयी हैं
उसे ऑइलपे कन्ट्रोल भी चाहिये
और अपने देशके जवान शहीदभी नहीं करने हैं
वो हवाई युद्धसे सबकुछ कंट्रोल करना चाहती हैं

उसे साफ पता हैं
वो क्या कर रहीं है

सवाल ये हैं कि क्या तुम लोग कुछ  सोच समझके कर रहे हो?

या सिर्फ रिएक्शन दे रहे हो

क्या हंगामा खड़ा करनाही तुम लोगोंका मकसद हैं
फिर ये सूरत बदलेगी कैसे

हवाई हमलोंको चेहरा नहीं होता
सिर्फ नाख़ून होते हैं

क्या तुम लोग नाख़ुनोंसे लड़ रहे हो ?

८०

कहीं ऐसा तो नहीं की
एक रिलिजियस माफिया हैं
जो तुम लोगोंकों यूज़ कर रहा हैं
और मजहबको ड्रग की तरह सप्लाय कर रहा हैं ?

पाशने कहा था
सबसे खतरनाक होता हैं सपनोंका मर जाना
तुम लोगोंके ऐसे कौनसे सपने मर गये  हैं
जो इतने खतरनाक बन गये हों ?


८१

एकतरफ वहाबी
दूसरीतरफ ब्राह्मणी

एक तरफ यज्ञसे उपजी वर्णव्यवस्थाकी खाई
दूसरीतरफ मजहबी कर्मठ ऑइलके जला देनेवाले कुँए

मैंने कार्सका त्याग किया हैं
तो मुझे ऑइलकी जरूरत नहीं हैं
और जो थोड़ा जरूरी होगा
मैं सब्जियोंके बदले खरीद सकता हूँ

टेरेरिस्ट लोगो ,
मेरे वतनके लोगों ,
पराये वतनके लोगों ,
मुझे आपत्ती  हैं
''हमारा मजहब सर्वश्रेष्ठ मजहब ''
इस दांवे पर
''नहीं हैं भाई ऐसा नहीं हैं
सारे प्रॉफेट्स अल्लाहने भेजे हैं
तो सारे प्रॉफेट्स सर्वश्रेष्ठ हैं
हम कौन हैं ऊँचनीँच करनेवाले
क्या हम अल्लाहसे बड़े हैं ?
नहीं भाई मैं तो अल्लाहसे खुदको छोटा मानता हूँ ''

टेरेरिस्ट लोगो ,
मेरे वतनके लोगों ,
पराये वतनके लोगों ,
खुदको अल्लाहसे बड़े मानते हों या छोटे ?

८२

मेरे एक  स्पिरिचुअल गुरु मुस्लिम थे
और उन्होंने मुझे सिर्फ एक बार कसम दिलायी थी
''पाक क़ुरआनपे हाथ रखके कसम खाओ कि
ज़िन्दगीमे शराब कभी पिओगे नहीँ ''
और मैंने पाक क़ुरआनपे हाथ रखके कसम खाई थी कि
मैं कभी शराब नहीं पिऊँगा
अाजभी मैं क़ुरआनकी इज्जत करते हुए
एक बुंदभी शराब नही पिता
क्या तुम  लोग ऐसी इज्जत क़ुरआनको दे रहे हो ?

टेरेरिस्ट लोगो ,
मेरे वतनके लोगों ,
पराये वतनके लोगों ,

क्या तुम लोग सिर्फ सच बोल रहे हो ?
क्या तुम लोग शराब पी नहीं रहे हो ?
क्या तुम लोगोने जुआँ खेलना बंद किया हैं ?
क्या तुम लोगोने चित्र बूत फिल्म देखना और बनाना बंद किया हैं ?
क्या तुम लोगोने संगीत बनाना और सुनना बंद किया हैं ?

क्या हैं दूसरोंसे उम्मीद करनेसे पहले
खुदको साफसुथरा देखना जरुरी नहीं  हैं

सबसे बड़ा ज़िहाद खुदके अंदर बैठे सैतानसे हैं
वो जीतनेके बाद छोटे छोटे ज़िहाद आते हैं

मोहम्मदने पहले सबसे बड़ा ज़िहाद लड़ा था उसे जीता था
फिर छोटे छोटे ज़िहाद लड़े थे

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,
 पराये वतनके लोगों 
पहले सबसे बड़ा जिहाद लड़ो और जीतो 

८३

आसपास इतनी गाडियाँ हैं कि
प्रदूषण हजार टांगोंसे
जॉगिंग  कर रहा  हैं

अविचार और प्रदूषणमे क्या फर्क हैं
कुश्रद्धा और प्रदूषणमे क्या फर्क हैं

मेरी नाक घुसमट रही हैं
अपनीही साँस किलर लग रही हैं

ऐसा लग रहा हैं
मैं बमसे नहीं
इस प्रदूषणसे मारा जाऊँगा

८४

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,
 पराये वतनके लोगों 

हर बमस्फोट पिछले बमस्फोटका इको होता हैं
या फिर वो बिलकुल नया होता हैं ?
मरनेवालोंकी मौत पिछले मरे हुए लोगोंकी इको होती हैं
या वो भी नयी होती हैं ?
जन्नत सबकेलिये सेम हैं या फिर हर नए आदमीकेलिये नयी ?
कितना कष्ट होता होगा ना हर बार मारनेका नया तरीका ढुंढ़नेकेलिये
ताकि हर बार मौत नयी लगे
और न्यूज़ बने

मुझे तो तुम लोग कभी कभी
मौतके फॅशन डिज़ाइनर लगते हो

८५ 

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,
 पराये वतनके लोगों 
मैं तुम्हारी कार्यशालापे पहुँच रहा हूँ 

सब सैरभैर दौड़ रहे हैं 

लाशें प्रोमोजकीतरह चल रही हैं 

हर लाश बिखरी हुई हैं 
ऐसा लग रहा हैं 
मौत खुदको डिकंस्ट्रक्ट करने आई थी 
और धांदलीमे खुदही बिखर गयी 

मुझे रोना रहा हैं 
मगर  मैं रो नहीं रहा हूँ 

सन्न आँखोसे सन्नाटा देख रहा हूँ 

मातम ऐसा चल रहा हैं 
जैसे कोई उसका दी एंड नहीं 

इतने सारे इनोसंट हंट 

मौतको मैं कोई पहली बार नहीं देख रहा हूँ 
मगर इतनी तादादमें पहली बार देख रहा हूँ 

सबसे खतरनाक सपनोंका मरना नहीं होता 
सबसे खतरनाक होता हैं अपनोंका मरना 

८६ 

ऐसा कौन हैं जो लाइफ मीनिंगफुल बनाना नही चाहता ?
मगर दूसरोंकी लाइफ मारके खुद्की लाइफ मीनिंगफुल बनाना ?

एक खालीपन हैं हमारे अंदर 
जिसे भरनेकी हर कोई कोशिश कर रहा हैं 
और नाकाम हो रहा हैं 

मजहब एक कोशिश थी 
विज्ञान एक कोशिश थी तंत्रज्ञान एक 
और अब ये चिन्हज्ञान 

एक कुआँ जो भरता ही नही 
एक रेगिस्तान हैं जो मिटता ही नहीं 

पहले सर पटकते थे 
अब कंप्यूटर 

मतलब मतलबी बन रहे हैं 
अर्थ अर्थव्यवस्था 
मीनिंग्स मीन 

हम सिर्फ बह रहे हैं 
हवाओंमें कविताओमे हथियारोंमें किताबोंमे 

हमारा आखरी पड़ाव 
या तो समुन्दर हैं या रेगिस्तान 

एक बात पक्की हैं 
आखिरमे हम सब अपनीही प्यासमे मरनेवाले हैं 

८७  

मुझे एक बुजुर्ग शायर मेसेजमे कह रहे हैं 
''कविओंको हमेशा रोमॅंटिक रहना चाहिये 
और टेरेरिझमपे इमोशनल कविताए लिखनी चाहिये ''

टेरेरिज़म सिर्फ इमोशनल बात हैं ?

दो आसूँ बहाकर लाशोपे सारे शायर चले गये 
 हथियारोंको मैं सवाल मौतमे रुककर पूछ्ता रहा 


८८ 

कितना भी देख ये मौतका आलम आज ख़तम नहीं होगा 
तेरी ज़िंदगी बाक़ी हैं तू ज़िन्दगिकीतरफ चल 

८९ 

रेलवे की बस ?
बस की  रेलवे ?

क्या पकड़के जाऊ ?

अगर अभीभी कुछ बम एक्टीव होंगे तो किसमे हो सकते  हैं ?
बसमे या रेल्वेमे ?

एक डायलमा दिलको डायल कर रहा हैं  
 जो डाय नहीं होना हैं इसीलिए चल रहा हैं 

सिक्युरिटी सिक्युरिटी तू क्या बला हैं 

हम सब जिन्दा रहना क्यों चाहते हैं ?
इन्सानकी आखरी उम्मीद जीनेपे टीकी हुई हैं 

जिंदगी रियालिटी हैं 
मौत पॉसिबिलिटी हैं 

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,
 पराये वतनके लोगों 

मैं तुम लोगोंकी तैयार की हुई पॉसिबिलिटीको 
केलेकीतरह छील रहा हूँ 
और उसकी छीलकोपे पैर रखके 
बारबार गिर रहां हू

९० 

इन्सनियतके सारे बाजीगर टुकड़े 
डरमे सांसे गिन रहे हैं 

पूरी सीटी फ्रैग्मेण्टेड होके 
सी सॉ खेल रही हैं 

 टेरेरिस्ट लोगोंकी लगायी हुई गाजरकी पुँगी बराबर बज गयी हैं 
और ब्यूरोक्रसीकी भैंसेभी डांस कर रही हैं 

टेररीझम मेक्स एवरीथिंग ऑथेंटिक एंड एक्टीव 


९१ 
एक बुढ्ढा एक बुढ्ढा आरडीएक्सपे बैठ गया 
अँधा होके बदलेमें अकारण ऐट गया 


आरडीएक्स बोला आरडीएक्स बोला ढूँढ ले माचिस 
जलाते हुए समझ जायेगा क्यां हूँ मैं  चीज 

माचिस बोली माचिस बोली निकाल अन्दरकी तीलियाँ 
देखते देखते बन जायेगी सब ख़ूनी तितलियाँ 


बुढ्ढ़ेने निकाली तीली 
और बीड़ी जला ली 
अमोनियम नाइट्रेटकी चल गयी कव्वाली 

आगसे लगी आग 
पूरी बाग़ खाक 

तात्पर्य : बुढ्ढ़ोंको  आरडीएक्सपे बिठाना नहीं चाहिये 
                                  फिर चाहे वो कितनाभी पैसा दे 

९२ 

बसेस बसेस नहीं रहीं हैं 
मुसाफिर मुसाफिर नहीं रहे हैं 
बसस्टॉप बसस्टॉप नहीं रहे हैं 

भीड़के जूएँखाने बन गए हैं 
जिसकी रमी लगी उसे बैठनेकी जगह 

हर कोई जिंदगीके पास जल्दी पहुंचना चाहता हैं 
हर कोई ऐसा दौड़ रहा हैं जैसे कोई टेररिस्ट बॉम्ब लेके पीछे लगा हैं 

मैं भकास आँखोसे बसका इंतजार कर रहा हूँ 

पहले नेटवर्क 
अब बेस्टकी बस 

९३ 

मोबाईलकी कीज़ मेरे हाथमे थी 
यहाँ पूरा मोबाईल और मेरी मोबाइलिटी 
बेस्टके नेटवर्कके हाथोमे हैं 

एक बस रहीं हैं 
ना नेमप्लेट ना इशारा 
पूरा मुद्द्ल गायब हैं 
हम प्रवासी कन्फ्यूज 

''बस कहाँ जा रही हैं ?''
''हमें नहीं पता ''
''ड्राइवर कंडक्टर को नहीं पता ?''
''अरे भाई नहीं पता ''
''ये तो मिसमॅनेजमेंटकी हाइट हैं ''
''भाई डेपोमे जानेसे पहलेही आप लोगोने रोक दी 
तो क्या घंटा पता चलेगा ?''
''झूठ बोल रहे हो ''
''जो सोचना हैं सोचो जय बजरंगबली तोड़ टेरेरिस्टोंकी नली ''

टेरेरिस्टोंका नाम लेतेही सब डर रहे हैं 
उसीका फायदा लेके मैं चढ़ रहा हूँ 

'' अरे भाई कहाँ जा रहे हो ?''

''जहाँ बस जायेगी '' मैं जवाब देके बिंदास सीटकी तऱफ 

अब जगबुडी हो या स्फोट 
या मर्डर हो या लूँट 
खाली जगहका घुँट 
चिरायु हो 

९४ 

अंधी जम्प लेना मेरी फितरत हैं 
मेरे माँके लाख टोकनेके बावजूद 
मैं आजभी बिना सोचे समझे 
किसीभी खाइमे कूद जाता हूँ 

आधी जम्पसे सही हैं अंधी मगर पूरी जम्प 
ये जम्प सही गयी हैं 
और बस दिंडोशीकीतरफ दौड़ रही हैं 

रीडर मडमास्टर बॉटलर केऑसर इरेज़र फिनॉमिनर वेदररीडर वर्कर सेलर डिरेक्टर 

हर आदमी रिफ्लेक्ट कर रहा हैं 
अपने अपने सीटसे अपना अपना रोल 

''गॉड इज़ ग्रेट ''
''तुस्सी ग्रेट हो ''

कोई मिनटोंमे कोई आधे घंटेमे बच गया हैं 

सबके पास अपनी या अपने किसीके  बचनेकी स्टोरी हैं 

बस रास्ता चाट मसालेकितरह चांटते हुए जा रहीं हैं 
ट्रक्स रास्तेको शराब की तरह सिप सिप पीके जा रहे हैं 
कार्स रास्तेको डाएट फुड़कीतरह मजबूरन खाती हुई जा रहीं हैं 
बाइक्स रास्तेको बिना खाये सिर्फ सूंघते हुई जा रही हैं 

सारे वेहिकल्सको दहशतने जन्म दिये  हुए मच्छरोंसे हत्तीरोग हुआ हैं 
और सारे ड्राइवर्स सब्रका मीठा फल खानेकी बजाय 
इंतजारका करेला रस पी रहे हैं 

९५

तुम लोगोंके  दहशतके सापोंने 
कहाँ कहाँ छोड़े हैं बमके अंडे  ?

ये हवा तुम लोगोंके फण्डोंका  आशियाना बनीं हैं 
उसके नोंकपे तुम्हारी कांस्पीरेसी आँखे खोल रही हैं 
और बादलोंसे हमारी आँखोमे तलवारे घुसेड़ रही हैं 

तुम्हारे आफिमी खेत तुम्हारे नाटे पहाड़ लेके 
तुम कहाँ अदॄश्य हो जाते हो  ?

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,

 पराये वतनके लोगों

इस बससे उँग रहे  हैं तुम्हारे ऊँचाइके पहाड़
और  मेरे कलेजेकी  किताब
छोटी और छोटी होके
मेरे खाली बूटोमे नाटी होंके
घूस रही हैं

तुम लोग अब कौनसा नया बूट निकालनेवाले हों
यात्रा करनेवाले इन निरुपद्रवी बसचारियोंकेलिये ?

९६

हर पाँच मिनिटकेबाद
हर कोई चेक करता हैं
अपनी अपनी सीट

अभीभी हर किसीको लगता हैं की
बमस्फोट बाकी हैं
और अपने गांडके नीचे हों सकता हैं

औरते हमेशाकीतरह लिपस्टिक लगा नहीं रही हैं
उनके आईने बमस्फोटोने कैद किये हैं

कंडक्टर सूखे हुए हाथोंसे पूछ रहा है ,''टिकेट ?''

उसकी थैली मेकॅनिकली बजा रही हैं खाकी थांप
और यात्री ब्लेंक होके टिकिट्स निकाल रहे हैं

सबको मौतने घेरा हैं
और हर कोई बधिरताकि चुनर ओढ़े
अपने जिन्दा होनेको उसमे  छुपा रहा हैं

९७

काल बर्फ बना हैं
और बस उसे पिघलाकर उठकबैठक करते हुए
आगे जा रहीं हैं

सबकी लगी हैं गाण्ड
सबको हुई हैं सुखंडी

आँखोंके डेलोंके डेरे नींदसे काले पड़ रहे हैं

कोई नहीं जानता पासवर्ड
मगर हर किसीमे लॉगइन हुआ हैं रणछोड़ इफेक्ट

सबको उलटी लटकाके निकल गयी हैं किसीकी जटील मतली
और पतली गलीसे  भाग गया  हैं
पॉइज़निंग होके गलेका  साउंड सीस्टम
मौनके हाईवेपे

वॉयलेंटने सबकुछ  सायलेंट किया हैं
सिवाय बसका  हॉर्न

वो दो दो कदमपे बज रहा हैं
और चिल्ला रहा हैं
''मेरे बसके अंदर
बम्बईके सौ चूहें जिन्दा हैं
और उन्हें लेकर
हम जा रहे हैं
हटो हटो ये सीटीवालों ये बस हैं कॉस्मोस्तानकी
जिन्दा रहना चाहते हैं  इनकी ना तैयारी बलिदानकी
वंदो कॉस्मोस्तान !वंदो कॉस्मोस्तान!  ''

९८

मेरा मोबाईल बसभर घूंम रहा हैं
हर कोई अपने जिन्दा होनेकी खबर अपने घर पहुँचाना चाहता हैं
और साथसाथ वो यात्राके कौनसे मोड़पे हैं इसकी ब्रेकिंग न्यूज़भी

एक कॉल करते समय अमेरिकाको गालियाँ दे रहा हैं
एक अल कायदाको

एक ख़ूनशी नज़रसे कंडक्टरकी थैली निहार रहा हैं
एक किसी लड़कीसे बैठे बैठे दिल हार रहा हैं

एक गंज चढ़ी हुई सीट खुलके निखल रही हैं
और उसकी कर्रचिनँ आवाजसे सब चर्र हो रहे हैं

कुछ पलकेलिये मौतभरा  सन्नाटा
फिर ''हालचाल ठीकठाक हैं ''

फिर एक बार
एक अठ्ठाईस युग इटपे खड़ा होके  ईटा हुआँ
एक अगली सीटके ज़ुल्फोंके कुल्फीमे डॉल्फ़िनसा  थटा हुआ

चारजन वादविवाद कर रहे हैं
इस बमस्फोटसे इस शहरके कितने टुकड़े हुए हैं इस मुद्देपर

दोजन हनुमानचालीसाका फेथक्लब जुबाँपे उतारके
कर रहे हैं भयनिवारण

एकजन हल्लूसे देशी निकालके पी रहा हैं देशीवाद
और एक अम्पायरकीतरह  ग्लोबल इशारे कर रहा हैं

मगर कोई तीसरा अंपायर नहीं हैं
किसीको  नहीं हैं पता
कौन क्लीन बोल्ड हुआ हैं
कहाँ  क्यूँ  और कैसा

९९

एक कुदरती ऑइल
मल्टीप्लेक्स होके
अलग अलग कुओंसे
सिर्फ अमेरिकन या यूरोपियन थेयटर्समे
रिलीज हो रहा हैं

एक अमेरिकन सुपरमँन
बगलमे ऑइल कम्पनियाँ रखके
अरेबियामे झर रहा हैं

एक ब्रिटीश जेम्स बॉन्ड
संताक्लॉजके भेसमे क्लॉक उल्टा घुमाके
रेगिस्तानमें समयको  ठहरा रहा हैं

एक कल्चर जो दातोंसे रेगिस्तान छीलता था
दाढ़दुःखीकेलिएभी
अमेरिकन डेंटिस्टके पास जाये इसीलिए चली हुई साजिश
और जवाबमे  निकली हुई टेररिस्ट तोंफ

खूबसूरतिका शायराना अंदाज़
जिसपे मैं फ़िदा था
अब बदसूरत होके इस बसमे बिखरा हुआ पड़ा हैं
और मैं कश्मीरमें गुजारी हुई रातोंकों याद करते हुए
मेरे गीले ऑसुओंको आँखोही आँखोंमे सूखा रहा हूँ

१००

मैं आहत हूँ
और अपने आपसे सवाल पूछ रहा हूँ

क्यूँ ? 

अब तुमही बता दो 

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,
 पराये वतनके लोगों ,

हमारे बीचमे जो निगोशिएशनका टेबल था 
उसे किसने नष्ट किया और कब 

ये बिनासरवाली बवासीर 
हमें कब हुई 
जो हम आमनेसामने बैठनाभी टालना सीख़ गये   ?

एक झींप कब नीचे आयी पताही नहीं चला 
और अब जहाँ देखू वहॉँ तुम लोगोंकें रेडिओएक्टीव इन्कार 

एक चूहा देखते देखते पूरी कायनात बन गया 
और इब्लीसके पहाड़ काटनेकी  बजाय 
इन्सानियतको कुतरने लगा 

सबकुछ टेस्टलेस हो रहा हैं 
और मेरी अपाइज़ जुबान 
मोबाईल लेकर 
खुदमे वापसी कर रहीं हैं हैं । 

जहाँ गुलाबोंके सवालोंके जवाब कांटोसे आ रहे हो 
उस जगहसे ए दिल बिनामहक लौटना अच्छा 

१०१ 

मुझे तेरी याद आ रहीं हैं
इस पुरे शहरमे मैं एक आवारा कुत्तेकीतरह साधूसा भटक रहा था
और तुमने मुझे प्यारकी गलीमें लाके छोड़ दिया हैं

मैं नहीं जानता प्यारमे दहशत कितनी वहशत कितनी और इश्क़ कितना

पूरा शहर दहशतसे गुजर चूँका  हैं
हमारी मोहब्बत दहशतसे गुजरी चूँकी हैं

इसका क्या अंजाम  हैं
ना तुझे पता हैं ना मुझें

ये अच्छाही हैं की
हम बच्चोंको जन्म नहीं देनेवाले

वर्ना ये भी सवाल बायलॉजिकल हो जाता कि
हमारी नेक्स्ट जनरेशन क्या इसीतरहके दहशतसे गुजरेगी ?

अब ये सवाल सिर्फ फिलोसोफिकल हैं

मैं तुम्हारे बारेमें सोच रहा हूँ
और अचानक पोलीस फ़ोर्स दाखिल हुआ हैं

बसमे हरकोई चिड़िचूप हैं

कूत्ते पूरे बसको सूँघ रहे हैं

कुछ नहीं मिलता हैं
और साँसे फिरसे ज़िन्दगीमे ऊग रही हैं

मुझे दूरसे तुम्हारे मोहब्बतकी खुशबू आ रही हैं
और मैं उसमे खड़ा होके फिरसे जन्नतकी वो गार्डन बन  रहा हूँ
जहाँसे आदम और हव्वाकी कहानी शुरू हो गयी थी


१०२

गणपती बाप्पा>>>>

किसीके  अचानक भगवानको याद किया हैं

मोरया >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>

सबके उसे साथ दिया हैं

गणपती बाप्पा>>>>मोरया >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
गणपती बाप्पा>>>>मोरया >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
गणपती बाप्पा>>>>मोरया >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>

अचानक जैसे सब जिन्दा हो गये हैं 
और अचानक  मुझे एहसास हो रहा हैं 
मेरे बगलमें जो बैठा हैं वो मुसलमान हैं 

अचानक वो भी खड़ा होके नारा दे रहा हैं , ''गणपती बाप्पा>>>>''

सब नारा दे रहे  हैं ,''मोरया >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>''

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,
 पराये वतनके लोगों ,

चेहरोंको खूनमें  नहाके तुम लोग गये  हो बंदा रूपय्या साथ लेके
और जो बची हुई चिल्लर हैं वो फिरसे इकठ्ठा होके
खुदको रुपय्या बना  रही हैं

हम हिन्दोस्तानी हैं
सदीयोंसे चिल्लोरोसे रुपैया बना रहे हैं

गणपती बाप्पा>>>>मोरया >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>

१०३

लोग बाहर आ रहे हैं

 टेरेरिस्ट लोगो ,
 मेरे वतनके लोगों ,
 पराये वतनके लोगों ,

लोग तुम लोगोंकी दहशतको लाँघकेँ बाहर आ रहे हैं 

लाशे जली हैं 
फिरभी  इस शहरका क्लोरोफ़िल अभीभी शाबूत हैं 

मुझे लगी हैं प्यास 
और मदद देनेकेलिये नाकेनाकेपे स्वयंसेवक और बॉटल्स 

एक स्वयंस्फूर्तता बिस्किट्स खाना भेल बाँट रही हैं 
और हम उसके सहारे 
 इस भीषण कालरात्रमे डकार दे रहे हैं 

तुम मारनेवाले कितने ? बीसतीस ?
बचानेवाले हजारोंकी तादादमें खड़े हैं

ये मुम्बईका स्पिरिट हैं

समझना हैं तो समझो
और उलझना चाहते हैं तो उलझो

१०४

ट्रैफ़िक फस्त करके बस पहुँची हैं
एक खाली बादलमे
जो ना टेरेरिस्ट हैं ना विक्टिम

बरसात भर रही हैं आल्हाद

बूँद बूँद  ताजगी बूँद बूँद जवानी
पानीकी रवानी चारो ओऱ

ऐसा लग रहा हैं
लोग अब अंताक्षरी खेलना शुरू करेंगे

इस संहार-रात्रमे बने हुए नये ग्रुप
अब स्टॉपगणीक गलेमें गले डालकर बिखर रहे हैं
मिलनेका वादा करके

एक टेरेरिस्ट स्वल्पविरामके बाद लोग लिखते रहे
अपने आज़ादीकी नयी संहिता
जो किसी सिलेबसमें सिखायी नहीं गयी थी

उसे मेरे दिलोदिमागमे लिपटके मैं मेरे सीटसे उठ रहा हूँ

डर खतम हो चूँका हैं और मोबाईल बज रहा हैं

दुसरी ओऱ तुम हों

कैसे हो ?
मस्त !
खाना खाया ?
हाँ !
हमने यहाँ सौ लोगोंको खाना दिया ये सोचके की तुम्हेभी किसीने खाना दिया होगा
अच्छा ?

१०५

मैं नहीं जानता इस महानगरीके लहुका रंग
दिल ढूँढने जाओगे तो पत्थर मिलेगा
और स्टील ढूंढने जाओगे तो मिलेगी रसरसती जिन्दादिल नस

मैं डायग्नोसिस किये बिना उतर रहा हूँ अपने सहयात्रीके साथ
हम कार्ड्स एक्सचेंज कर रहे हैं

''श्रीधरभाई ,ये तो एक हफ्तेका कचरा --चला जायेगा
अगले हफ्ते मेरे घर आना ''
''जरूर ''
''खुदा हाफ़िज़ ''
''ख़ुदा हाफ़िज़ ''

वो चला जा रहा हैं
और वो
अपने दो पाँवपे चलनेवाला इंसान हैं
ये डगमगाते हुए अंधेरेमेभी
मुझे साफ नज़र आ रहा हैं ।


श्रीधर तिळवे -नाईक

(चॅनेल : टेररीज़म काव्यफाइलसे )