Saturday, November 14, 2015

रैलीमें 


मेरे सामने इंडस valley
और वीरशैवोंकी रैली

पैक्ड अककमहादेवी मंडप
बसवण्णाका कड़क जप

हर कोई जाने अपनी जात
मैंही हूँ अकेला अनाथ

मेरा सबकुछ हैं शिव
मुझे नामंजूर शिवाशिव

हटो हटो मैं इंसान करके आया था यहाँ
pure  शिवजी के पास रहा हूँ जा

पयूषणपर्वमे  
रहता हूँ जैनगल्ली हूँ शिवका तांव
मुझे चढ़ता हैं शिवजीका चाँव

मगर मैं मानता हूँ महावीर ग्रेट
मुझेभी पहुँचना हैं कैवल्यपे स्ट्रेट

ऋषभनाथ मुझेभी लगता हैं प्यारा
खाता हूँ उनके ज्ञानका वृषभ बनके चारा

क्या जैन क्या शैव एकही पाँव
हैं हम दोनोंकी कैवल्यही गाय

आ बन जाते हैं नए कोरे बछड़े
एक माँका दूध पीके जो थे बिछड़े

उठा दूधका ग्लास फर्क कर खल्लास
तू मैं फ्रेश बाकि सब बास
 श्रीधर तिळवे नाईक 
 (डेकॅथलॉन -अनकॅटेगरीकल /मंत्र विभाग काव्यफाईलसे  )


No comments:

Post a Comment