अभीकी कविताओंसे
लफ्ज /श्रीधर तिळवे
दो फ़िल्मोंके बीचसे गुजर रहा हैं एक लफ्ज
दो सीरियल्स के बीचसे गुजर रहा हैं एक लफ्ज
उसे बनना हैं कविता
और उसके आसपास
सिर्फ शूटिंग रॉस्टॉक
लोग कह रहे हैं
बेटा सुधर
अमिताभ बच्चनके मुँहमे जाके बैठ
शाहरुख़ खानके गलेमें जाके बैठ
या फिर आमिर खानके जुबाँमें जाके बैंठ
उससे तेरा करियर बनेगा
दो वक़्तकी रोटी खायेगा
मगर लफ्ज हैं कि
अडियल हैं
उसे अभिनयके मुँहमे जाके बैठना नहीं हैं
उसे कवितामे खड़ा होना हैं
म्युज़िक डिरेक्टक्टर्सको उसकी दया आ रही हैं
वे उसे गीतोमे जगह देना चाहते हैं
मगर लफ्ज जानता हैं की
उसे गीतोमे बैठना पड़ेगा
वो खड़ा हैं
और पूरा जग इंतजार कर रहा हैं
उसके बैंठनेका
उन्हें लगता हैं कि
बुढ्ढा हैं
थक के बैठ ही जायेगा
और लफ्ज
रॉस्टॉक के पहाड़ तोड़कर
कविताकी तरफ
जा रहा हैं
श्रीधर तिळवे नाईक
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